नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम कैसी लगी आपको ये एनेस्थीसिया क्या हैं और ये शरीर में कैसा प्रभाव डालती है: हिंदी मेंकी  यह पोस्ट हमें कमेन्ट के माध्यम से अवश्य बताये या आपके मन में कोई सुझाव हो तो हमे कमेंट के माध्यम से जरुर साझा करेइससे जुड़ी जानकारी देने जा रहे है. अगर आप को और ज्यादा  जानकारी या Admission की जानकारी या कॉलेज के जानकारी तो आप BE Educare एक्सपर्ट्स से ईमेल  करके 5 मिनट का फ्री Call सेशन बुक करें|

Join us on Telegram

इस पोस्ट में हम आपको एनेस्थीसिया क्या हैं और ये शरीर में कैसा प्रभाव डालती है: इसकी पूरी जानकारी देंगे  अगर आपको किसी भी टॉपिक नोट्स  या कोई भी सीलेबस  या कोई भी न्यूज की जानकारी या  पीडीऍफ़ चाहिये तो आप हमे Comment माध्यम से जरुर बताएं   हमारी बेबसाइट को रेगुलर बिजिट करते रहिये |

एनेस्थीसिया क्या हैं और ये शरीर में कैसा प्रभाव डालती है।

ये दवा लेने के बाद मरीज़ को एहसास ही नहीं होता कि उसके शरीर पर कहां, क्या हुआ. लेकिन कई बार ये दवा कम असर करती है. यानी उनका दिमाग़ सोता नहीं है. सर्जरी के दौरान उन्हें एहसास होता रहता है कि कब, कहां क्या हो रहा है.

लेकिन, एनेस्थीसिया के असर की वजह से वो इस हालत में नहीं होते कि अपनी बात कह पाएं. यहां तक कि वो हाथ-पैर भी नहीं हिला-डुला पाते. ऐसे में उन्हें तकलीफ़ का गहरा एहसास होता है. ये तजुर्बा मरीज़ों में ज़िंदगी भर के लिए डर भर देता है.

रिसर्च बताती है कि हर 20 में से एक मरीज़ एनेस्थीसिया लेने के बाद भी जागरूक रहता है. लेकिन उसका शरीर हिलने-डुलने की हालत में नहीं होता.

अभी तक बिना किसी नुक़सान वाली बेहोश करने की दवा पर रिसर्च की जा रही थी. लेकिन, अब उन हालात को समझने पर भी रिसर्च शुरू हो गई है कि जिनमें मरीज़ पर बेहोशी की दवा का असर नहीं होता.

एनेस्थीसिया मेडिकल साइंस में किसी करिश्मे से कम नहीं है. बेहोश करने की बुनियादी दवाओं की खोज प्राचीन यूनान के शोधकर्ताओं ने की थी.

इससे पहले अफ़ीम और शराब देकर सर्जरी के वक़्त मरीज़ की तकलीफ़ कम करने की कोशिश की जाती थी. लेकिन इनके नतीजे स्थायी और तसल्लीबख़्श नहीं थे.

सलफ़्यूरिक ईथर

उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

1840 में वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी दवाएं खोज निकालीं जिनका असर ज़्यादा था. इनमें सलफ़्यूरिक ईथर ने रिसर्चर को सबसे ज़्यादा आकर्षित किया.

1846 में अमरीका के मैसाचुसेट्स जनरस हॉस्पिटल में सबसे पहले इसका इस्तेमाल हुआ.

हालांकि इस बार भी मरीज़ पूरी तरह बेहोश नहीं था. उसे पता था कि उसके शरीर पर कहां कट लग रहा है. लेकिन, उसका दर्द का एहसास कम हो गया था.

कुल मिलाकर ये तजुर्बा कामयाब रहा और यहीं से एनेस्थीसिया की शुरुआत हुई. आज बाज़ार में दर्द और होश कंट्रोल करने वाली बहुत-सी दवाएं उपलब्ध हैं लेकिन हरेक दवा का इस्तेमाल मरीज़ की ज़रूरत के मुताबिक़ होता है.

एनेस्थीसिया हमेशा ही मरीज़ को पूरी तरह बेहोश करने के लिए नहीं दिया जाता. बल्कि सर्जरी वाली जगह को ही सुन्न करने के लिए दिया जाता है. इसे रीजनल एनेस्थीसिया कहते हैं. इसे लेने के बाद दर्द का एहसास बिल्कुल नहीं होता.

लेकिन, क्या हो रहा है इसका इल्म होता है. वहीं सेडेटिव लेने के बाद मरीज़ को गहरी नींद आ जाती है. इतनी गहरी नींद की मरीज़ के होश-होवास छीन लेती है. इस गहरी नींद के दौरान उसके साथ क्या होता है उसे कुछ याद नहीं रहता.

एनेस्थीसिया हमारे शरीर में कैसे काम करता है, इसका सटीक जवाब आज भी रिसर्चरों के पास नहीं है. हालांकि मोटे तौर पर कहा जाता है कि ये दिमाग़ में पैदा होने वाले केमिकल जिन्हें न्यूरोट्रांसमीटर कहा जाता है, के साथ मिलकर काम करते हैं. ये केमिकल दिमाग़ के अलग-अलग हिस्सों के संपर्क को तोड़ देते हैं, जिससे मरीज़ किसी भी याद की कड़ी को जोड़ नहीं पाता.

बेहोश करने में बरती जाने वाली सावधानियां

एनेस्थीसिया में भी जिस प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल होता हो मरीज़ की उम्र, ऊंचाई, और वज़न के मुताबिक़ दिया जाता है. साथ ही ये भी देखा जाता है कि मरीज़ किसी अन्य प्रकार की दवा तो नहीं ले रहा है या वो सिगरेट पीने का आदी तो नहीं है.

कुछ जगहों पर न्यूरोमस्कुलर ब्लॉकर का इस्तेमाल होता है. ये एक ख़ास प्रकार का एनेस्थीसिया है, जो शरीर को वक़्ती तौर पर सुन्न कर देता है. ताकि शरीर सर्जरी के दौरान ना तो कुछ महसूस कर पाए और ना ही मरीज़ शरीर को हिला डुला सके.

एनेस्थीसिया लेने के बाद कुछ देर के लिए मरीज़ कोमा जैसी हालत में तो पहुंचता है. लेकिन, सुरक्षित तौर पर उससे बाहर भी आ जाता है और उसकी तकलीफ़ भी बिना किसी दर्द के ख़त्म हो जाती है.

न्यूरोमॉस्कुलर ब्लॉकर

लेकिन एनेस्थीसिया का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर ही किया जाता है. मिसाल के लिए अगर मरीज़ के शरीर से बड़ी मात्रा में ख़ून बहकर निकल गया है तो उसे कम असर वाला एनेस्थीसिया दिया जाता है.

एनेस्थीसिया देने के लिए शरीर में ख़ून उचित मात्रा में होने चाहिए. यहां तक कि न्यूरोमॉस्कुलर ब्लॉकर भी मरीज़ को बहुत सोच सझकर दिया जाता है क्योंकि इसके बाद शरीर कुछ वक़्त के लिए पैरालाइज़ हो जाता है. लेकिन उसे पता रहता है कि हो क्या रहा है और दिमाग़ किसी भी बात को एक दूसरे से जोड़ नहीं पाता.

आइसोलेट फ़ोरआर्म तकनीक

एनेस्थीसिया देने के बाद मरीज़ कितना होश में है, उसे तकलीफ़ का एहसास हो रहा है या नहीं, ये जानने के लिए आइसोलेट फ़ोरआर्म तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है.

यानी एनेस्थीसिया देने के बाद मरीज़ के बाज़ू पर एक कफ़ बांध दिया जाता है और कुछ देर बाद उससे मुट्ठी खोलने और बंद करने को कहा जाता है.

अगर मरीज़ आदेशानुसार करने लगता है तो पता चल जाता है कि अभी दवा का असर पूरी तरह नहीं हुआ है.

रिसर्च बताती हैं कि एनेस्थीसिया देने के बाद मरीज़ के होश में रहने के केस फ़िलहाल बहुत कम हैं. लेकिन इस पर ग़ौर करने की ज़रूरत है आख़िर ऐसा क्यों है.

मरीज़ को भी इस बात की ताकीद की जानी चाहिए कि अगर वो एनेस्थीसिया देने के बाद भी होश में हैं, तो तुरंत मेडिकल स्टाफ़ को बताएं ताकि सर्जरी के दौरान होश में रहने की वजह से होने वाली तकलीफ़ से बचा जा सके.

ANM भर्ती: नोटिफिकेशन हुआ जारी केवल 10वीं पास महिलाओं के लिए 3000 पदों पर बम्पर भर्तीCLICK HERE

कैसी लगी आपको ये एनेस्थीसिया क्या हैं और ये शरीर में कैसा प्रभाव डालती है। आइए जाने – हिंदी मेंकी  यह पोस्ट हमें कमेन्ट के माध्यम से अवश्य बताये या आपके मन में कोई सुझाव हो तो हमे कमेंट के माध्यम से जरुर साझा करे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *